* न्यूजीलैंड में 'मिंका' नामक एक वृक्ष पाया जाता है। उस वृक्ष के तने से मक्खन जैसा द्रव निकलता है, जो गाढ़ा भी होता है और बेहद मीठा भी। वहाँ के लोग मक्खन के बजाए उस द्रव का ही उपयोग प्रतिदिन भोजन में करते हैं।* वेस्टइंडीज के सूडानइलेह वन में एक वृक्ष पाया जाता है। इस वृक्ष को मोर्निंग ट्री (शोकाकुल वृक्ष) कहते हैं। इस वृक्ष से दिन भर संगीत की स्वर लहरियाँ निकलती हैं, मगर शाम होते ही वृक्ष से रोने की आवाज आती है।* ऑस्ट्रेलिया में 'टिनास' नामक एक वृक्ष पाया जाता है, जो साल में दो बार अपनी छाल बदल लेता है।* जावा (सुमात्रा) के समुद्र तट पर एक नरभक्षक वृक्ष पाया जाता है। इस वृक्ष के नीचे जो कोई भी प्राणी खड़ा हो जाता है, उसे यह अपनी खतरनाक टहनियों से ढँक लेता है। प्राणी मर जाता है, तो टहनियाँ अपने आप ऊपर उठ जाती हैं।* अमेरिका के कैलिफोर्निया शहर में हैंबेलेट स्टेट नामक एक पार्क है। इस पार्क में 'जैट सेकुजा' वृक्ष की ऊँचाई लगभग 122 मीटर है।* कोलकाता के बोटेनिकल गार्डन में एक विशाल वटवृक्ष है, जो दस एकड़ जमीन पर फैला हुआ है। यह 27 मीटर ऊँचा है तथा 241 वर्ष पुराना।
Monday, December 31, 2007
रोचक जानकारी- भूर्गभ में बहती अद्भुत नदी
भूर्गभ में बहती अद्भुत नदी
बेहद आर्श्चय की बात है ना किन्तु पृथ्वी के अनेकानेक रहस्यों की तरह यह भी सत्य है। हमारी पृथ्वी के र्गभ में करीब साढ़े सात हजार किलोमीटर लम्बी विद्युत की धारा बहती है। यह करंट की नितान्त प्राकृतिक नदी है। प्रकृति के इस विचित्र रहस्य को आस्टेलिया के तीन वैज्ञानिकों ने खोज निकाला था जो कि आस्टेलिया में चुम्बकीय क्षेत्रों का पता लगाने का वैज्ञानिक काम कर रहे थे। विस्तृत अध्ययन के बाद यह सत्य सामने आया कि भूर्गभ में कोई ऐसी महाशक्ति मौजूद है जो कि करंट का तेज झटका मारती हैई तब विशेष वैज्ञानिक तरीकों और यंत्रों से पता लगाया कि यह तो करंट की एक लम्बी धारा हैई जो पृथ्वी के तकरीबन 25 किमी नीचे बह रही है आर्श्चय तो यह है कि 25 से 35 किमी मोटाई और 60 से 250 किमी चौड़ाई की आठ हजार लम्बी यह विद्युत नदी पृथ्वी के र्गभ में करोडों र्वषों से शांत बह रही है।अगर इसकी तुलना पृथ्वी पर किसी प्राकृतिक र्पवत श्रृंखला या नदी से की जाए तो इसका आकार पृथ्वी की सबसे बड़ी र्पवत श्रंखला जितना होगा। इस विद्युत धारा के रहस्य को जानने के लिये कि आखिर भूर्गभ में करंट का र्निमाण कैसे होता हैई अमेरिकाई जापानई र्जमनी के वैज्ञानिक भूर्गभ में विशिष्ट तकनीकी वाले उपकरण लगा कर शोध में जुटे हैं। जापान के वैज्ञानिकों का अंदाज़ यह है कि पृथ्वी के बदलते चुंबकीय क्षेत्र तथा उसकी सतह पर प्राकृतिक बनावटों में हुए र्परिवतन से हुई आंतरिक प्रतिकिरियाओं के परिणाम से यह विद्युत धारा बनती रही है।
आकाश
Posted by Bahaar Bareilvi 0 comments
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4:40 AM